मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग का 29वां स्थापना दिवस समारोह
हम मध्यप्रदेश में वैज्ञानिक और लोकोपयोगी शिक्षा के विकास की ओर बढ़ रहे हैं – स्कूल शिक्षा मंत्री श्री परमार
बच्चों में वैज्ञानिक समझ बढ़ाने की जरूरत है, तभी हम विश्वगुरू बन पायेंगे – न्यायमूर्ति श्री गुप्ता
हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिये – कार्यवाहक अध्यक्ष श्री ममतानी
भोपाल /सिवनी( 13 सितम्बर 2023) मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के 29वां स्थापना दिवस के अवसर पर आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी, भोपाल में एक राज्यस्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला का केन्द्रीय विषय ‘‘शिक्षा का अधिकार – मानव अधिकार‘‘ रखा गया था। कार्यशाला के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान अपरिहार्य कारणों से कार्यशाला में उपस्थित नहीं हो सके, परंतु उन्होंने आयोग के स्थापना दिवस पर अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
स्थापना दिवस समारोह के विशिष्ट अतिथि मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री इंदर सिंह परमार ने ‘‘शिक्षा का अधिकार-मानव अधिकार‘‘ कार्यशाला को संबोधित करते हुये कहा कि बीते कुछ सालों में मप्र का शिक्षा परिदृश्य बहुत बदल गया है और यह बदलाव सरकार और समाज दोनों के प्रयासों से आया है। हम मध्यप्रदेश में वैज्ञानिक ज्ञान और लोकोपयोगी शिक्षा के विकास और विस्तार की ओर बढ़ रहे हैं। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के आलोक में हम खेल-खेल में शिक्षा देकर बच्चों के कंधों और दिमाग पर पुस्तकों और होमवर्क का बोझ कम करने का प्रयास कर रहे हैं। स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री ने भारत की पुरातन शिक्षा संस्कृति का उल्लेख करते हुये कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मार्गदर्शन में हम भारतीय दर्शन से ओतप्रोत अमूल्य शिक्षा धरोहर को पुर्नजीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पालन करते हुये हम बच्चों को सीखने और सिखाने वाली शिक्षा व्यवस्था की तैयारी में हैं। हम अपने बच्चों को विश्वस्तरीय शिक्षा दिलायेंगे ताकि वे पूरी दुनिया में हमारे देश और प्रदेश का नाम रौशन कर सकें।
इस अवसर पर शिक्षा का अधिकार अधिनियम और इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राज्य शासन के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा विद्यार्थियों व शिक्षकों के हित में किये जा रहे व्यापक प्रयासों की जानकारी से जुड़ी मप्र मानव अधिकार आयोग एवं स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारियों तथा विधिवेत्ताओं के आलेखों से ओतप्रोत ‘‘शिक्षा का अधिकार – मानव अधिकार” विषय आधारित पुस्तिका का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय कार्यवाहक अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने की। कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण के माननीय अध्यक्ष न्यायामूर्ति श्री जगदीश प्रसाद गुप्ता, मध्यप्रदेश रेरा अपीलेट अथाॅरिटी के माननीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वीपीएस चौहान तथा मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय सदस्य श्री राजीव कुमार टंडन विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर न्यायमूर्ति श्री एके गोहिल, श्री एनके जैन, मप्र विद्युत नियामक आयोग के माननीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री गोपाल श्रीवास्तव, मप्र मानव अधिकार आयोग के पूर्व सदस्य श्री सरबजीत सिंह, आयोग की प्रमुख सचिव श्रीमती स्मिता भारद्वाज, आयोग में एडीजीपी श्री बीबी शर्मा, आयुक्त लोक शिक्षण संचालनालय श्रीमती अनुभा श्रीवास्तव, अन्य आमंत्रित न्यायमूर्तिगण, न्यायाधीशगण सहित आयोग के अन्य सभी अधिकारीगण उपस्थित थे। कार्यशाला में स्कूल शिक्षा विभाग, लोक शिक्षण संचालनालय, राज्य शिक्षा केन्द्र के अधिकारी तथा भोपाल शहर की पांच शालाओं में अध्ययनरत् करीब 100 विद्यार्थीगण भी प्रतिभागी के रूप में उपस्थित थे।
विशिष्ट अतिथि स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री श्री परमार ने आगे कहा हमारी सरकार ने मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन करते हुये सीएम राइज स्कूल खोलने का नवाचार किया है। इन स्कूलों के जरिये हम बाल वाटिकाओं से हायर सेकंडरी अर्थात् नर्सरी से लेकर बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई एक ही शाला परिसर में करायेंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में अगले दस सालों में कुल 9200 सीएम राइज स्कूल खोले जायेंगे। पहले चरण में हम प्रदेश में 369 सीएम राइज स्कूलों की स्थापना कर रहे हैं। इनमें से 274 सीएम राइज स्कूल, स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन और 95 सीएम राइज स्कूल, जनजातीय कार्य विभाग के अधीन होंगे। सीएम राइज स्कूलों की स्थापना का उद्देश्य समग्र शिक्षा और छात्र केन्द्रित शिक्षण व्यवस्था की स्थापना करना है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक क्षमताओं का बेहतर तरीके से विकास होगा। मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के गुलाना में प्रदेश का पहला सीएम राइज स्कूल प्रारंभ भी हो चुका है। हम प्रदेश में ऐसी व्यवस्था भी कर रहे हैं, कि यदि कोई साधारण व्यक्ति, कोई अधिकारी, कोई राजनेता यदि जिस शाला में पढ़कर उसने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की हो, उस शिक्षा संस्थान को गोद लेना चाहे या उस शाला के विकास में योगदान देना चाहे, तो वह ऐसा कर सकेगा। इससे समाज में अपने स्कूल के प्रति श्रद्धाभाव और बौद्धिक कर्ज उतारकर समाज का विकास करने की भावना जागृत होगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रदेश की शालाओं में मानव अधिकार विषय को एक पाठ या पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए और यह काम मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के कुशल मार्गदर्शन में होना चाहिए।
कार्यशाला के विशेष अतिथि मध्यप्रदेश माध्यस्थम अधिकरण के माननीय अध्यक्ष न्यायामूर्ति श्री जगदीश प्रसाद गुप्ता ने कहा कि भारतीय संविधान में दिये गये जीवन के अधिकार में ही शिक्षा का अधिकार समाहित हैं। वर्ष 2009 में पारित शिक्षा का अधिकार अधिनियम में 14 साल तक के बच्चों को शिक्षा दिलाना और इसके लिये सभी जरूरी व समुचित संसाधन उपलब्ध कराना भी राज्य सरकार का अनिवार्य दायित्व कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि यदि हमें आगे बढ़ना है, तो बच्चों और बड़ों दोनों में वैज्ञानिक समझ विकसित करने की जरूरत है, तभी हम विश्व के ज्ञान गुरू बन पायेंगे। उन्होंने कहा मानव अधिकारों का ज्ञान और इनके संरक्षण के बारे में स्कूलों में और समाज में भी निरन्तर चर्चा/संगोष्ठियां आयोजित की जानी चाहिये, इससे समाज में मानव अधिकारों के प्रति जागरूकता आयेगी।
कार्यशाला के विशेष अतिथि मध्यप्रदेश रेरा अपीलेट अथाॅरिटी के माननीय अध्यक्ष न्यायामूर्ति श्री वीपीएस चौहान ने कहा कि कोई भी बच्चा शिक्षा पाने या स्कूल जाने से वंचित न रहे, इसकी निगरानी के लिये ही भारतीय संसद ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया है। इस अधिनियम में यह कानूनी प्रावधान किया गया है कि यदि कोई बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है, तो इसके लिये उसके माता-पिता, समाज और सरकार तीनों जिम्मेदार हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम यह अधिकार देता है कि 14 साल की आयु तक उसकी शिक्षा-दीक्षा, उसका पोषण, उसे समुचित आहार मिले, यह उस बच्चे का कानूनी हक है। उन्होंने बताया कि किसी मानव के जन्म लेने से उसकी मृत्यु तक उसके शारीरिक, व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और स्वैतांत्रिक अधिकार मानव अधिकार हैं और बच्चे को यह अधिकार दिलाना सरकार का दायित्व है।
अध्यक्षयीय उद्बोधन में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के माननीय कार्यवाहक अध्यक्ष श्री मनोहर ममतानी ने सभी को मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के 29वें स्थापना दिवस की शुभकामनायें देते हुए कहा कि आयोग में प्रतिवर्ष लगभग नौ से दस हजार प्रकरण मानव अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित दर्ज होते हैं। आयोग द्वारा औसतन 9500 प्रकरणों का प्रतिवर्ष अंतिम निराकरण कर दिया जाता हैं। इसी का परिणाम है कि आयोग की स्थापना के 28 साल बाद आयोग में करीब 3500 मामले ही लंबित हैं। आयोग द्वारा मुख्यतया प्रतिवर्ष दो कार्यक्रम 13 सितम्बर को आयोग का स्थापना दिवस और 10 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस आयोजित किये जाते है। इन कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य, मानव अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में समग्र रूप से विचार-विमर्श कर उनके प्रति सभी सम्बन्धितों में अपेक्षित जागरूकता, संवेदनशीलता और कर्तव्यों के निर्वहन की उत्कृष्टता स्थापित करना, रहता है, जिससे भारत के संविधान की मंशा के अनुरूप मानव अधिकारों के संरक्षण के साथ विधि का शासन स्थापित हो सके। इसी श्रृंखला में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के 29वें स्थापना दिवस पर हमने ‘‘शिक्षा का अधिकार- मानव अधिकार‘‘ विषय पर यह कार्यशाला आयोजित की है। उन्होंने कहा कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसकी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। शिक्षा लोकतंत्र के समग्र विकास और प्रभावी संचालन के लिए महत्वपूर्ण होकर एक समतापूर्ण और निष्पक्ष समाज बनाने और आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम बनती है। उन्होंने मातृभाषा की महत्ता पर जोर देते हुये कहा कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जाना चाहिये क्योंकि बच्चे की अपनी भाषा में वह तेजी से सीखता, समझता और अमल करता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2002 में संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 21ए को जोड़ते हुए शिक्षा के अधिकार को भी मौलिक अधिकार के रूप में मान्य किया गया, लेकिन इसके साथ ही यह भी प्रावधान किया गया कि ऐसा राज्य द्वारा विधिक उपबंध के जरिए ही किया जा सकेगा। इसके करीब सात साल बाद 2009 में बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम संसद द्वारा पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन उपरंात एक अप्रैल, 2010 से सम्पूर्ण भारत में प्रभावशील किया गया। इसी के साथ संविधान के अनुच्छेद-45 में पूर्व प्रावधान के स्थान पर नवीन प्रावधान जोड़ते हुए अब यह अपेक्षा की गई है कि राज्य सभी बच्चों के लिए छह वर्ष की आयु पूर्ण होने तक प्रारंभिक बाल्य अवस्था देख-रेख और शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा। इसी के अंतर्गत वर्तमान में राज्यों में आंगनवाड़ी केन्द्रों की स्थापना एवं बच्चों के पोषण आहार संबंधित कार्यक्रम प्रचलित हैं। संविधान के अनुच्छेद-51ए में बालक या प्रतिपाल्य के माता पिता या संरक्षक का यह मूल कर्तव्य भी जोड़ा गया कि वे 06 से 14 वर्ष की आयु के अपने ऐसे बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करेगें। शिक्षा का अधिकार अधिनियम सरकारों से इसी प्रावधान का परिपालन कराता है।
कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत भाषण देते हुये आयोग के माननीय सदस्य श्री राजीव कुमार टंडन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2023 में बहुत से गुणात्मक सुधार कर अभिनव प्रयास किया गया है, परन्तु इसको मूर्त रूप देना एक बहुत बडी चुनौती है। सर्वशिक्षा अभियान, मिड-डे-मील, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्कूल चले हम की तरह से विभिन्न अभियानों से शिक्षा के प्रसार में गति आई है। प्रदेश के शासकीय विद्यालयों में नौवीं से बारहवीं तक के अध्ययनरत छात्र छात्राओं को निःशुल्क पाठय पुस्तक प्रदाय की जा रही है। बच्चों को कानून, मेडिकल, आईआईटी में एडमिशन के लिये कोचिंग की व्यवस्था भी की जा रही है। प्रतिभाशाली बच्चों को लेपटॉप, ई-स्कूटी, साईकिल निःशुल्क वितरित की जा रही है। मध्यप्रदेश में सीएम राइज स्कूल के माध्यम से इन्हें पूरा किये जाने का प्रयास किया जा रहा है। यह एक प्रशंसनीय पहल है। सीएम राइज स्कूलों में सर्व सुविधा सम्पन्न वातावरण के साथ, रोचक एवं आनंददायक शिक्षा प्रदान करने के, बेहतर अधोसंरचना के प्रयास किये जा रहे हैं। प्राचार्यों के लिये हैण्ड बुक, शिक्षक हैण्ड बुक, बेहतर प्रशिक्षित शिक्षक, विज्ञान का प्रशिक्षण शामिल किया गया है। मध्यप्रदेश में प्रथम चरण में 369 सीएम राइज स्कूल प्रारम्भ किये जा रहे हैं। आगामी 10 वर्षों में 9200 विद्यालय संचालित किये जाने का लक्ष्य है। मध्यप्रदेश की साक्षरता का प्रतिशत 74 हो चुका है। साक्षरता का प्रतिशत निरंतर बढ़ा है, पर अभी भी कुछ राज्यों में साक्षरता का प्रतिशत कम है। पुरूष एवं महिलाओं में साक्षरता में करीब 15 प्रतिशत का अंतर है। लोक शिक्षण संचालनालय के तहत प्रमुख राज्य योजनाओं में निःशुल्क पाठय पुस्तक वितरण योजना, सुपर 100 योजना, प्रतिभाशाली छात्र प्रोत्साहन योजना, निःशुल्क साइकिल वितरण योजना, मॉडल स्कूलों की स्थापना एवं संचालन, उत्कृष्ट स्कूलों की स्थापना एवं संचालन, बालिका छात्रावास भवन निर्माण एवं संचालन, दिव्यांग छात्रावास की स्थापना एवं संचालन, सैनिक स्कूल की स्थापना एवं संचालन, समेकित छात्रवृत्ति योजना, सीएम राइज स्कूल योजना लागू की गई हैं, जो अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं, जिसका लक्ष्य सर्वसुविधा सम्पन्न विद्यालयों का संचालन है। राज्य शिक्षा केन्द्र के अंतर्गत राज्य की निःशुल्क गणवेश प्रदाय योजना महत्वपूर्ण है, जिससे वर्ष 2021-22 में 64.37 लाख बच्चे बच्चे लाभांवित हुये हैं। इन योजनाओं के परिदृश्य में साक्षरता काफी तेजी से आगे बढ़ रही है और आशा है कि भविष्य में मध्यप्रदेश में शिक्षा के अधिकार की अवधारणा को एक सही मूर्त रूप प्राप्त हो सकेगा। इसलिये मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने अपने स्थापना दिवस कार्यक्रम का केंद्रीय विषय ‘‘शिक्षा का अधिकार-मानव अधिकार’’ लिया है, ताकि प्रदेश के प्रत्येक बच्चे को उसकी शिक्षा के मूलभूत अधिकार प्राप्त हो सके। बच्चों को शिक्षा दिलाये जाने के संबंध में मध्यप्रदेश शासन की पहल बहुत ही सराहनीय है। इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था से मध्यप्रदेश में साक्षरता के प्रतिशत में अधिकाधिक वृद्धि होगी।
कार्यशाला के अंत में आयोग के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री बीबी शर्मा नेे आमंत्रित अतिथिगणों, न्यायमूर्तिगणों व न्यायाधीशगणों सहित कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग देने वाले आयोग के सभी अधिकारियों, कर्मचारियों सहित राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारियों व अन्य प्रतिभागियों का हृदय से आभार ज्ञापित किया। कार्यशाला में आयुक्त, लोक शिक्षण संचालनालय, श्रीमती अनुभा श्रीवास्तव द्वारा पीपीटी प्रेजेंटेशन के जरिये शिक्षा का अधिकार अधिनियम के आलोक में स्कूल शिक्षा विभाग की योजनाओं, कार्यक्रमों व अन्य गतिविधियों की विस्तार से जानकारी दी। कार्यशाला के प्रारंभ में अतिथियों का पौधा देकर स्वागत किया गया। कार्यशाला की स्मृतियां अतिथियों के मन में बनी रहे, इसके लिये सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भी आयोग द्वारा भेंट किये गये।
कार्यक्रम का सफल संचालन आकाशवाणी की उद्घोषिका श्रीमती सुनीता सिंह ने किया।