-
पर्यावरण एवं जनजीवन को बचायें
सिवनी 1 मार्च 2021 (लोकवाणी)। उपसंचालक कृषि श्री मोरिसनाथ एवं कृषि विज्ञान केन्द्र सिवनी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. एन.के. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए कहा है कि फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों को न जलायें। इससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मृदा स्वास्थ्य एवं जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। फसल अवशेष जलाने से वातावरण में कार्बन डाईऑक्साईड, मिथेन, कार्बन मोनोऑक्साईड आदि गैसों की मात्रा बढ जाती है। मृदा की सतह का तापमान 60-65 डिग्री सेन्टीग्रेट हो जाता है, ऐसी दशा में मिट्टी में पाये जाने वाले लाभदायक जीवाणु जैसे वैसीलस सबिटिलिस, स्यूडोमोनास, ल्यूरोसेन्स, एग्रोबैक्टीरिया, रेडियाबैक्टर, राइजोबियम प्रजाति, एजोटोबैक्टर प्रजाति, एजोस्प्रिलम प्रजाति सेराटिया प्रजाति, क्लेब्सीला प्रजाति, वैरियोवोरेक्स प्रजाति आदि नष्ट हो जाते है। ये सूक्ष्म जीवाणु खेतों में डाले गये खाद एवं उर्वरक को तत्व के रूप में घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराते है। अवशेषों को जलाने से ये सभी सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते है। इन्हीं सूक्ष्म जीवों के नष्ट हो जाने से खेतों में समुचित रूप सें खाद एवं उर्वरकों की आपूर्ति पौधों को न हो पाने के कारण उत्पाद प्रभावित होता है।
अतः किसान भाईयों से अपील है कि फसल की कटाई के बाद फसल अवशेषों कडवीध्नरवाई को रोटावेटर व कृषि यंत्रों के माध्यम से जुताईकर खेत में मिला दें। फसल अवशेष पर वेस्ट डिकम्पोजर कचरा अपघटक या बायोडायजेस्टर के तैयार घोल का छिड़काव करें या फसल की कटाई के बाद घास-फूस पत्तियॉ, ठूंठ, फसल अवशेषों को सड़ाने के लिये 20-25 किलोग्राम नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर बिखेर कर नमी की दवा में कल्टीवेटर या रोटावेटर की मदद से मिट्टी में मिला देना चाहिए। इस प्रकार अवशेषों खेतों में विधिटत होकर मिट्टी में मिल जाते है और जीवाणुओं के माध्यम से ह्यूमस में बदलकर खेत में पोषक तत्व (नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि) तथा कार्बन तत्व की मात्रा को बढ़ा देते है। हमारे खेतों में ये हयूमस तथा कार्बन ठीक उसी प्रकार काम करते है जैसे हमारे खून में रक्त कणिकाएं। इसीलिए किसान भाई फसल अवशेष प्रबंधन को अपना कर पर्यावरण को सुरक्ष्ज्ञित बनाने में सहयोग प्रदान करें। छपारा विकासखंड के प्रगतिशील कृषक श्री शिवकांत सिंह ठाकुर द्वारा विगत 3 दिन वर्षा से मक्का के भुट्टे की तुडाई के बाद कडवी को रोटावेटर की सहायता से सीधे खेत में मिला देते है। इससे जहां पहले इनके द्वारा 5 एकड में 100 क्विंटल गेहूं का उत्पादन लेते थे वहीं विगत 3 वर्षो से रासायनिक खाद के उपयोग में कमी के साथ ही 15 प्रतिशत तक गेहूं के उत्पादन में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके द्वारा गया कि नरवाई न जाने से अगली फसल में मजदूरी की लागत में कमी यूरिया के उपयोग में कमी, खरपतवार एवं दीमक का नियंत्रण जैविक खाद की उपलब्धता में बढोत्तरी के साथ ही अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। म.प्र.शासन पर्यावरण विभाग मंत्रालय द्वारा दिनांक 5 मार्च 2017 को जारी नोटिफिकेशन में नरवाई जलाने पर 2 एकड से कम 2500 रूपये, 2 एकड से 5 एकड़ तक 5000ध्- एवं 5 एकड़ अधिक 15000 रूपये का जुर्माना किया जाना प्रस्तावित हैं।